Ravidas Jayanti Status, Quotes, Wishes in Hindi 2025

Ravidas Jayanti Status, Quotes, Wishes in Hindi 2025

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संत रविदास जी के दोहे, Quotes in Hindi

कह रैदास तेरी भगति दूरि है,भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव,जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।

वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की

जाति-जाति में जाति हैं,जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

मन चंगा तोह कठौती में गंगा।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिले सबन को अन्न
छोट बड़ो सब सम बसे रविदास रहे प्रसन्न।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

किसी का भला नहीं कर सकते
तो किसी का बुरा भी मत करना,
फूल जो नहीं बन सकते तुम
तो कांटा बनकर भी मत रहना।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

करम बंधन में बन्ध रहियो,
फल की ना तज्जियो आस,
कर्म मानुष का धर्म है,
संत भाखै रविदास।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

जाति-जाति में जाति हैं
जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके
जब तक जाति न जात।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

गुरु जी मैं तेरी पतंग
हवा में उड़ जाऊंगी,
अपने हाथों से न छोड़ना डोर
वरना मैं कट जाऊंगी।
रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

चरन पताल सीस असमांना,
सो ठाकुर कैसैं संपटि समांना।

चारि बेद जाकै सुमृत सासा,
भगति हेत गावै रैदासा।

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।

गुरु मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी।
चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी।

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास।

रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास।

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।

वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।

हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।

हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।

हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और साथ साथ मिलने वाले फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य।


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