समलैंगिक (Same-Sex) विवाह पर भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

17 अक्टूबर, 2023 को समलैंगिक विवाह पर जारी किए गए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मुख्य बिंदु कुछ इस प्रकार है:

समलैंगिक विवाह का कोई मौलिक अधिकार नहीं:  न्यायालय ने सर्वसम्मति से माना कि भारत के संविधान के तहत समलैंगिक विवाह का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।

LGBTQIA+ अधिकारों की मान्यता:  न्यायालय ने LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों के लिए एक साथी चुनने के अधिकार और अंतरंग संबंध बनाने के अधिकार की पुष्टि की।

कानूनी स्थिति पर फैसला संसद करेगी: न्यायालय ने समलैंगिक विवाह की कानूनी स्थिति पर निर्णय लेने का अधिकार भारत की संसद पर छोड़ दिया।

नागरिक संघों की अस्वीकृति:  न्यायालय ने समलैंगिक जोड़ों के लिए नागरिक संघ की मांग को खारिज कर दिया।

CARA द्वारा गोद लेने पर प्रतिबंध असंवैधानिक घोषित:  कोर्ट ने केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के उस सर्कुलर को रद्द कर दिया, जिसमें LGBTQIA+ जोड़ों को बच्चे गोद लेने से रोका गया था।

अधिकारों के समूह की पहचान:  न्यायालय ने माना कि राज्य को LGBTQIA+ जोड़ों के लिए अधिकारों के एक समूह को मान्यता देनी चाहिए, जिसमें एक साथ रहने का अधिकार, संपत्ति साझा करने का अधिकार और विरासत का अधिकार शामिल है।

फैसले पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं:  सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है. कुछ ने इसे सही दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया है, जबकि अन्य ने पर्याप्त दूर तक नहीं जाने के लिए इसकी आलोचना की है।

फैसले का महत्व:  यह निर्णय भारत में LGBTQIA+ समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि यह एक साथी चुनने के उनके अधिकार और अंतरंग संबंध के अधिकार को मान्यता देता है।

निर्णय अंतिम नहीं है:  यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारत में समलैंगिक विवाह पर अंतिम शब्द नहीं है। संसद अभी भी समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए कानून पारित कर सकती है, और सुप्रीम कोर्ट भविष्य में संभावित रूप से अपने फैसले पर दोबारा विचार कर सकता है।

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